बताया गया वन विभाग द्वारा आयोजित यह महोत्सव कुमाऊं में पैंय्या वृक्ष के नाम से पहचाने जाने वाले पवित्र पद्म वृक्ष (वैज्ञानिक नाम प्रूनस सेरेसोडिस) को संरक्षित करने तथा इसे सांस्कृतिक उत्सव के रूप में स्थापित करने की अनूठी पहल है। वन विभाग की कोशिश है कि उत्तराखंड में प्रतिवर्ष जापान और शिलांग की तर्ज पर इस मौसम में पद्म वृक्ष के गुलाबी फूलों की बहार छाने पर मनाये जाने वाले ‘चेरी ब्लॉजम’ उत्सव की तरह ‘पद्म महोत्सव’ मनाया जाए।
स्थानीय संस्कृति में भी पद्म वृक्ष का विशेष महत्व है। इसे पवित्र माना जाता है और महाशिवरात्रि सहित कई पर्व-त्योहारों में इसकी पत्तियों का पूजा-अर्चना व पारंपरिक आयोजनों में विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है। इसके फूलों के खिलने का समय शरद ऋतु में अक्टूबर से नवम्बर तक होता है, जब हिमालयी घाटियाँ गुलाबी और सफेद रंग के फूलों से भर जाती हैं। इस दौरान आयोजित महोत्सव में पदम की प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ स्थानीय कला, हस्तशिल्प और लोकपरंपराओं का भी प्रदर्शन किया जाता है।
महोत्सव में चित्रकला और निबंध प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया गया, जिसमें निबंध प्रतियोगिता में दिव्यांशी, हर्षिता जीना और माही कनवाल ने क्रमशः प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान प्राप्त किए। आयोजन के दौरान क्षेत्राधिकारी अनुसंधान दिनेश तिवारी, अनुसंधान सहायक योगेश त्रिपाठी, वन आरक्षी पूरन आर्या के साथ प्रभारी प्रधानाचार्य गीता पांडे, दीपा कुमियाल, हेमा, शबनम, मन्नू ढौंढियाल, संध्या आर्य, कृष्ण आर्य, गीता खनका, अनीता शाह, सुमिता, रजनी और बीना फुलेरा अध्यापिकाएं तथा छात्राएं भी मौजूद रहीं।