आज सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार की वह याचिका सुनवाई के लिए लेना उचित नहीं समझा जिसमें हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी। हाई कोर्ट ने मलेरकोटला में डिप्टी कमिश्नर (DC) और एसएसपी के कब्जे में रहा गेस्ट हाउस खाली कर इसे जिला एवं सत्र न्यायाधीश के आधिकारिक तथा आवासीय प्रयोजन के लिए सौंपने का निर्देश दिया था। इस मामले की सुनवाई जस्टिस सुर्या कांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने की और राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर नाराजगी जताई। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि 15 साल से पंजाब सरकार ने न्यायिक इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च नहीं किया है, यह संकेत देते हुए अदालत ने कई प्रश्न उठाए कि हाई कोर्ट के आदेश में आखिर क्या गलत था और न्यायिक ढांचे पर अब तक कितनी राशि खर्च की गई है।
याचिका पर सुनवाई के दौरान पंजाब सरकार के एडवोकेट जनरल मनिंदरजीत सिंह बेदी ने दलील दी कि हाई कोर्ट की सभी मांगें पूरी कर दी गई हैं, किन्तु बेंच ने इस तर्क को ठहराते हुए भी ठोस उदहारण नहीं देखे और हाई कोर्ट के प्रस्तावित तामील के अनुरोध पर “एक ठोस न्यायिक परिसर” या नया कोर्ट कॉम्प्लेक्स बनाने के उपाय मौजूद कैसे हैं, इस पर स्प्ष्ट उदाहरण मांगे। जस्टिस Kant ने कड़ा सवाल किया: “हाई कोर्ट के आदेश में गलत क्या है? आपने न्यायिक ढांचे पर कितना खर्च किया?” उन्होंने Malerkotla को नया जिला बनाने के सरकारी कदम की समयरेखा भी चिन्हित की—2021 में जिला घोषित हुआ और 2024 में हाई कोर्ट ने नोटिफाई किया—परंतु बुनियादी न्यायिक ढांचे की ओर पर्याप्त कदम क्यों नहीं उठे? जस्टिस Kant ने राजनीतिक कारणों से district घोषित करने और फिर कानून-व्यवस्था के लिए आवश्यक सुविधाओं के अभाव को एक साथ जोड़ा और कहा, ‘आप SSP के लिए घर बनवाने में लगे हैं, पर सत्र न्यायधीश के लिए जगह कहाँ?’
जस्टिस बागची ने न्यायपालिका के प्रति वित्तीय नीति के मामले में भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि अगर आप अपने पुलिस अधिकारियों के बेहतर आवास चाहते हैं, तो पहले न्यायाधीशों के आवास और कार्यालयों के लिए जरूरी स्थान प्रदान करें। अदालत ने केंद्र–राज्य फंडिंग की चुनौती पर भी प्रकाश डाला और कहा कि न्यायिक परिसर बनाने के लिए उपलब्ध फंडिंग केंद्रीय फंडिंग और राज्यों के मिलान अनुदान (matching grants) पर निर्भर है; कई राज्यों में मिलान अनुदान नहीं देने से परियोजनाएँ अटक जाती हैं। अदालत का मानना है कि पूरे देश में न्यायपालिका के लिए न्यूनतम बजट तय होना चाहिए, क्योंकि वर्तमान प्रचलन GDP के सिर्फ 1% से भी कम है—जो पर्याप्त नहीं है।
आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार की याचिका को वापस लेने की अनुमति दे दी और कहा कि वह सोमवार तक हाई कोर्ट में समय बढ़ाने के लिए आवेदन कर सकती है। साथ ही राज्य को आवश्यक स्टेटस रिपोर्ट और सुधार प्रस्ताव भी प्रस्तुत करने होंगे। यह फैसला न्यायपालिका के बुनियादी बुनियादी ढांचे, वित्तीय सहयोग और जजों के निवास–कार्यालयों की स्थिति को लेकर एक बड़ा संकेत समझा जा रहा है। इस पर व्यापक बहस की जरूरत है कि केंद्र–राज्य फंडिंग से कैसे न्यायिक इन्फ्रास्ट्रक्चर को सुदृढ़ किया जाए और GDP के प्रतिशत से परे-budgetary गाइडलाइंस बनें। Supreme Court of India में स्थिति स्पष्ट हो या नहीं, इसे लेकर आगे की कार्रवाई अब हाई कोर्ट के पटल पर भी निर्भर करेगी; और अधिक जानकारी के लिए सरकार के न्याय विषयक पोर्टल देखें।
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