नोबल फाउंडेशन के बच्चों की स्पीच ने दिल छू लिया — जानिए क्यों

लुधियाना से निकलकर समाज-सुधार की राह में एक नया अध्याय जुड़ गया है, जहाँ नोबल फाउंडेशन के सामाजिक कार्य और मां शारदा विद्यापीठ की 30 शाखाओं में चल रही शिक्षा सेवा ने समुदाय के सामने एक मजबूत बदलाव की तस्वीर पेश की है। इस क्रम में शनिवार को पटियाला स्थित थापर इंस्टिट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के परिसर में एक सार्थक मुलाकात आयोजित की गई। सोशियोलॉजी विभाग के 25 विद्यार्थी, प्रो. डॉ. रवि प्रकाश के नेतृत्व में बिहार कॉलोनी स्थित ब्रांच पहुंचे और बच्चों से मिलकर उनके आत्मविश्वास, पढ़ाई की स्थिति और विचारों के दायरे को करीब से समझने की कोशिश की।

मेहमानों ने संस्था के बच्चों से सीधी बातचीत कर उनके अनुभवों के धागे को पकड़ा। सुधा, पलक, अदिति, सानिया, प्रिंस और कौशल ने विभिन्न विषयों पर प्रभावी भाषण दिए, जिनमें शिक्षा के प्रति निष्ठा, सामाजिक जिम्मेदारी और नए विचारों को अपनाने की प्रेरणा स्पष्ट थी। साथ ही 7वीं से 10वीं तक पढ़ चुकी मनीषा ने अपने संघर्षों और सफलता के पलों को साझा कर युवा पीढ़ी के बीच उम्मीद की रोशनी जगा दी। थापर विश्वविद्यालय के गुरसीरत, गगनप्रीत, नवदीप और अन्नया ने कहा कि संस्था से जो सुना गया था, उसे यहां आकर उनसे कहीं अधिक सकारात्मक रूप में पाया गया, जिससे ब्रांच के माहौल में नई ऊर्जा दिखी। अभिभावक कारीलाल ने भी भावुक होकर अपने विचार रखे और कहा कि बच्चों के उज्ज्वल भविष्य को देखकर उन्हें गर्व महसूस हो रहा है, जो उन्होंने पहले कभी महसूस नहीं किया था।

फाउंडर राजेंद्र शर्मा ने सभी मेहमानों का सम्मान करते हुए कहा कि भारत को समझना हो, तो इन बच्चों में ही झांकना होगा; सच यह है कि भारत इन बच्चों में बसा है। इस संदेश ने कार्यक्रम के अंत को एक प्रेरक मोड़ दिया और शिक्षा-सेवा के जरिए सामाजिक परिवर्तन की दिशा को और स्पष्ट किया। नोबल फाउंडेशन की यह पहल, साथ ही मां शारदा विद्यापीठ के शिक्षा नेटवर्क, ग्रामीण और शहरी इलाके के बच्चों को समान अवसर देकर समग्र विकास की दिशा में अहम भूमिका निभा रहे हैं। इस शानदार उदाहरण से यह स्पष्ट होता है कि शिक्षा से समाज कितना मजबूत बन सकता है और स्थानीय समुदाय में कैसे स्थायी बदलाव ला सकता है।

इस प्रकार की साझा पहल को और बल देने के लिए देखें: नोबल फाउंडेशन और थापर इंस्टिट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, पटियाला. यह संयोजन न सिर्फ शिक्षा-सेवा के क्षेत्र में एक मॉडल है, बल्कि सामाजिक परिवर्तन के लिए एक प्रेरणा भी बन गया है—जहां वास्तविक भारत के बच्चे ही विकास की भविष्यवाणी कर रहे हैं।