CM मान को जत्थेदार का जवाब: ‘पंथ के आगे, सरकारों से नहीं’

अमृतसर, पंजाब—श्री अकाल तख्त साहिब के कार्यकारी जत्थेदार ज्ञानी कुलदीप सिंह गर्गज ने आज मुख्यमंत्री भगवंत मान की टिप्पणी पर कड़ा जवाब देते हुए कहा कि वह पंथ के सामने झुकना जानते हैं, सरकारों के सामने नहीं। उन्होंने स्पष्ट किया, “पंथ जहां खड़ा है, पंथ के आगे जत्थेदार हजार बार झुकता है, लेकिन सरकारों की परवाह न पहले थी, न आगे होगी।” उनके इस बयानों में पंथ के प्रति अटूट निष्ठा साफ झलकती है और यह स्पष्ट किया गया कि पंथ की मर्यादा ही सर्वोपरि है, सरकारों की प्राथमिकता नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि जिस व्यक्ति के पास दाढ़ी और केश नहीं हैं, उसका जत्थेदार क्या जवाब देगा, यह एक अहम सवाल है जो पंथ की पहचान और उसकी पवित्रता पर सीधे असर डालता है। पंथ का काम पंथ ही करेगा, सरकार उसे सहयोग दे, पर मर्यादा और पंथ की अस्मिता बनाए रखनी चाहिए—यह उनका संदेश था।

जत्थेदार की यह टिप्पणी उस समय आई जब उन्होंने कैबिनेट मंत्री तरुणप्रीत सिंह सोंध को आनंदपुर साहिब में एक कार्यक्रम के दौरान सिख मर्यादा के उल्लंघन के लिए फटकार लगाई और स्पष्टीकरण देने को कहा था। इस घटनाक्रम के बाद मुख्यमंत्री मान ने गर्गज की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए कहा था कि उनकी नियुक्ति “सही मर्यादा” का पालन नहीं करती और “राजनीतिक रूप से प्रभावित” है। पंजाब की सियासत में यह बहस फिर उभरी कि क्या धार्मिक सम्मान और पंथ-आधारित संस्थाएं राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रह पाती हैं, या ऐसे मुद्दों पर फिर संतुलन बनाकर ही चलना संभव होगा।

गर्गज ने इस दावे को बेबुनियाद करार दिया और स्पष्ट किया कि पंथ के मामलों पर किसी भी तरह का समझौता संभव नहीं। उन्होंने कहा, “जिस व्यक्ति के दाढ़ी और केश नहीं हैं, उसका जत्थेदार क्या जवाब देगा? अगर वह सिख रूप धारण करे तो बात अलग है।” साथ ही उन्होंने स्वयं को सत्ता-भयों से मुक्त बताया और कहा कि उनकी वास्तविक सत्ता गुरु गोबिंद सिंह महाराज हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्होंने कभी नहीं कहा कि गुरमत समागम में सरकारें न आएं; “सरकारें आएं, स्वागत है, लेकिन पंथ के काम पंथ ही करेंगे और सरकारें उसमें सहयोग करें,”—यह उनका स्पष्ट संदेश था।

यह बयान एक बार फिर से स्पष्ट करता है कि अकाल तख्त साहिब जैसे धार्मिक संस्थान और पंजाब की राजनीतिक नेतृत्व के बीच कितनी बारीक और संवेदनशील परतें काम करती हैं। गर्गज की टिप्पणी से यह संकेत मिलता है कि पंथ-निष्ठा के बावजूद मर्यादा-पालन और पंथ की प्रतिष्ठा से समझौता संभव नहीं, भले ही सत्ता-केन्द्रित तंत्र कितने भी समर्थ हों। सिक्ख समुदाय और वैश्विक दर्शकों के लिए यह अहम है कि गुरुद्वारों-आयोजनाओं और गुरमत-समागमों में सरकारों का योगदान कैसे संतुलित और पारदर्शी रहता है। अधिक जानकारी के लिए पढ़ें: अकाल तख्त साहिब का परिचय और गुरु गोबिंद सिंह का जीवन परिचय.