जानें कैसे 10 साल की लेडी मिल्खा ने पिता को जमीन दिलाई

फरीदकोट के सादिके गांव की 10 साल की नवजोत कौर अब पंजाब के ग्रामीण इलाकों में एक नया उभरता नाम बन चुकी है, जिसे लोग “लेडी मिल्खा” के खिताब के करीब मानते हैं. 100 मीटर की द्रुत दौड़ में उसने हाल के महीनों में कई अहम जीत हासिल कर अपने इलाके की उम्मीदें जगा दी हैं. इतना ही नहीं, इन जीतों से सावधानीपूर्वक बचत कर नवजोत ने अपने पिता के लिए 8 मरले जमीन खरीद दी है, और घर बनाने का सपना अभी भी उनके सामने है. शुक्रवार को जालंधर के सराय खाम गांव में आयोजित एक खेल प्रतियोगिता में उसने फिर से 100 मीटर की रेस में पहला स्थान पक्का करते हुए अपना दबदबा बनाए रखा. अपने छोटे-से জীবने के बावजूद नवजोत ने अब तक नौवीं साइकिल भी जीती है, जो एक मज़बूत आस्थागत संदेश देता है कि गरीबी के बावजूद मेहनत से बड़े मुकाम हासिल हो सकते हैं.

पंजाब के कई गाँवों में खेल महोत्सवों को एक मंच दे रहे सामाजिक मीडिया इन्फ्लुएंसर पिंका जरग का कहना है कि आने वाले दस साल में वह पंजाब के हर तीसरे बच्चे को एथलीट बनाने का सपना देखते हैं. उनका यह लक्ष्य केवल खेल से करोडों रुपये कमाने तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे पंजाब की धरती से नशे के कलंक को मिटाने की भी कोशिश है. वहीं इस उभरते खेल जगत में छोटे-छोटे सितारे राजू ढूडिके भी सामने आये हैं—मोगा जिले के ढूडिके गांव के आठ साल के बच्चे। राजू ने अंडर-8 100 मीटर रेस में पांचवीं बार साइकिल जीतने का रिकॉर्ड बना दिया है और उनकी बातों का स्टाइल उन्हें सोशल मीडिया पर भी लोकप्रिय बना रहा है.

नवजोत के बारे में बताते हुए उसके परिवार ने कहा कि गरीबी उनके जीवन का हिस्सा रहा, पर बेटी की खेल-कौशल ने परिवार की दिशा ही बदल दी है. नवजोत के पिता एक मजदूर हैं और घर के आर्थिक हालात भी चुनौतीपूर्ण रहे, पर बेटी के खेल को उन्होंने पूरी तरह आज़माने दिया. नवजोत की ट्रेनिंग के लिए कोचिंग और डाइट का भी पूरा इंतजाम किया गया है; वे बताती हैं कि पहली ट्रॉफी जीतने के बाद घर में ट्रॉफी रखने के लिए जगह नहीं थी—तो उसने उसे एक ईंट पर रख दिया. अब भी उनके घर में वही ट्रॉफी है और वे चाहती हैं कि घर बन जाने पर एक शोकेस बनकर ट्राफियाँ वहाँ सजें. नये घर के सपने के साथ नवजोत रोज़ 5 बजे उठकर अभ्यास करती है और बताती है कि उसका लक्ष्य विश्व-स्तर की रेसों में भाग लेना है ताकि वह अपने राज्य और देश का नाम ऊंचा कर सके. माता-पिता भी गर्व से कहते हैं कि अब वे अपने बेटे-बेटी के नाम से नहीं, नवजोत के नाम से पहचाने जाते हैं, और यह उनके लिए सबसे बड़ा सम्मान है. वे दुआ करते हैं कि पंजाब के हर बच्चे की मेहनत से ऐसा ही नाम हो.

दूसरे तरफ 8 साल के राजू ढूडिके भी इस कहानी का हिस्सा बन चुके हैं. मोगा के ढूडिके गांव से आने वाले राजू हर दौड़ में एक नया ठान के साथ पेश होते हैं—वे कहते हैं कि आज की रेस में वे जीतेंगे और जीतने के पहले ही उन्होंने 2-3 चक्कर पहले से प्रशिक्षण के रूप में लगा लिये थे. वे कहते हैं कि रेस के पहले खाली पेट आये थे ताकि जीत पर पूरा ध्यान रहे, और अगर जीत मिल जाए तो गाँव में पूरी साइकिल चक्र घुमाकर खुशी जाहिर करेंगे. अंडर-8 100 मीटर रेस में पाँच बार साइकिल जीत चुके राजू की कड़ी मेहनत और आत्मविश्वास ने उन्हें सोशल मीडिया पर भी एक स्टाइलिश एथलीट के तौर पर स्थापित किया है. इन दोनों बच्चों की कहानी एक साफ संदेश भी देती है कि सही दिशा और सपनों के साथ ग्रामीण बच्चे भी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं. आप इस प्रकार के खेलकूद से जुड़ी नवीनतम अपडेट पढ़ना चाहें तो The Hindu – Sport और BBC Sport जैसे विश्वसनीय स्रोत भी देख सकते हैं.

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