लुधियाना की कांग्रेस में अंदरूनी खींचतान एक बार फिर तेज हो गई है, और इसकी ऐसी धार तेजी से फैल रही है जैसे आगामी विधानसभा चुनाव 2027 के मद्देनजर गोटियां बिठाने की कवायद चल रही हो। सांसद मनीष तिवारी के करीबी माने जाने वाले और पूर्व जिला प्रधान पवन दीवान हलका पश्चमी में एक बार फिर सक्रिय हो चुके हैं। यह सक्रियता कहीं न कहीं इस संकेत के तौर पर देखी जा रही है कि जिला-वार सत्ता-गठजोड़ और टिकट बंटवारे के मसलों पर नेतागण दिल्ली दरबार की पसंद-नापसंद को लेकर मंचन तेज कर रहे हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद दीवान ने हलके और शहर की राजनीति से दूरी बना ली थी, पर अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग के सांसद बनने के बाद से वे फिर से चर्चा में आ गए हैं। आशु के हलके में दीवान की चाय पर चर्चा और उनके फेसबुक पोस्ट पर पुराने नेताओं के साथ फोटो शेयरिंग जैसी गतिविधियाँ यह बताती हैं कि हलका पश्चमी की राजनीति एक बार फिर गर्म हो गई है।
पवन दीवान की तीन बड़ी बातें इस उथल-पुथल के पीछे प्रमुख संकेतक मानी जा रही हैं। पहली बात यह है कि आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार संजीव अरोड़ा से उप-चुनाव हारने के बावजूद भारत भूषण आशु मैदान पर मजबूती से डटे हैं और वे लगातार लोगों से मिलने-जुलने में जुटे हुए हैं— Birthdays, सामाजिक कार्यक्रम और संस्कार समारोहों में वह सक्रिय दिखते हैं। हलका पश्चमी से आशु की सीट काटने के लिए पार्टी के लिए आसान नहीं है, क्योंकि आशु राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं और उनके समर्थक बताते हैं कि वे घटनाक्रम के केंद्र में बने रहने की कोशिश कर रहे हैं। विजिलेंस रेड और ED के आरोपों के बावजूद आशु कांग्रेस में बने हुए हैं, जो दिल्ली दरबार में गोटियां फिट कराने की प्रक्रिया को और भी जटिल बनाता है।
दूसरी बात यह है कि आशु की मजबूत पकड़ बनाने के सिलसिले में वे लगातारGROUND पर सक्रिय रहते हैं और जनता से जुड़ने के नए तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। सामाजिक कार्यक्रमों के अलावा वे सामाजिक-स्तर के आयोजनों में भी मौजूद रहते हैं, ताकि पार्टी के प्रति समर्थन का आधार मजबूत किया जा सके। तिसरी बात यह है कि 2027 के चुनावों के मद्देनज़र दिल्ली दरबार में टिकट बंटवारे की कवायद तेज हो चुकी है और ऐसे में गुटबाजी से जूझती कांग्रेस के भीतर “गांधी परिवार” के सबसे वफादार नेताओं के इर्द-गिर्द होने वाले घटनाक्रमों का असर साफ-सा दिख रहा है।
इन सबके बीच लुधियाना में कांग्रेसियों की टिकट-योजना में किशोरी लाल की भूमिका बार-बार चर्चा में आ रही है। किशोरी लाल लुधियाना के पार्षद से लेकर सांसद तक की टिकट फाइनल करवाने में अहम भूमिका निभाते रहे हैं और उनके बारे में ऐसी चर्चा है कि वे कई नेताओं को लंबे समय तक टिकट दिलाते रहे हैं। जो युवा नेता विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं, वे लगभग सभी किशोरी लाल के जरिए गांधी परिवार तक पहुंच बनाने के जुगाड़ में जुटे हैं। इस संदर्भ में पार्टी के भीतर की ताकतों के द्वंद्व और तार-तोड़ राजनीति के संकेत स्पष्ट हैं, जो 2027 विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के और अधिक मजबूर-में-तौर पर दिखते हैं।
समग्र रूप से देखें तो लुधियाना की कांग्रेस-राजनीति फिर से वितरित हो रही है, जिसमें पवन दीवान, भारत भूषण आशु और किशोरी लाल जैसे नायकों की भूमिका निर्णायक होगी। शुरुआत से ही यह धारणा मजबूत हो रही है कि गुटबाजी और दिल्ली दरबार की रणनीतियां हलके और शहर की राजनीति की दिशा तय करेंगी। पंजाब की राजधानी और आसपास के क्षेत्र में 2027 के लिए उम्मीदवारों के चयन, टिकटों की प्रक्रिया और राजनीतिक समीकरण कैसे चलते हैं, यह देखते हुए यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस के लिए यह सालभरा चरण कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण होने वाला है। आगे क्या-क्या घटनाक्रम होते हैं, यह आने वाले महीनों में स्पष्ट होगा। अधिक ताजा पॉलिटिकल अपडेट के लिए देखें NDTV Punjab News और Punjab Elections 2027 coverage – The Hindu.
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