क्यों गूंजा परिसर: ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’

लुधियाना के श्री सिद्ध पीठ दंडी स्वामी मंदिर में शनिवार के दिन 8वें दिन 75वें श्री हरिनाम संकीर्तन और गौलोकवासी पंडित जगदीश चंद्र कोमल जी महाराज के 25वें वरदान दिवस का आयोजन भक्तिमय वातावरण में हुआ। यह समारोह हरिनाम संकीर्तन के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण अवसर के रूप में देखा गया, जहां श्रद्धालु बड़े उत्साह के साथ भगवान के नाम की महिमा गाते रहे और मंदिर परिसर में आरती-भजन की धुनें गूंज उठीं। मंच पर गुरुदेव के जयघोष और भक्तों की धड़कनों के साथ यह खास कार्यक्रम लोगों के दिलों को एक ओजपूर्ण ऊर्जा से जोड़ रहा था। आयोजक समितियाँ साहित्यिक प्रवचन, मंदिर-प्रांगण की सजावट और सामाजिक सहयोग के साथ इस दिन को स्मरणीय बनाने में सफल रहीं। स्थानीय श्रद्धालु और प्रवासी भक्तों के अलावा युवाओं ने भी इसे एक प्रेरक सांस्कृतिक अनुभव माना।

इस अवसर पर वृंदावन से पधारे परम पूज्य गोवत्स श्री राधा कृष्ण महाराज ने अजामिल कथा सुनाई। धर्मात्मा ब्राह्मण अजामिल ने जीवन के अंतिम क्षणों में केवल नारायण नाम जपकर पापों से मुक्ति पाई और वैकुंठ धाम को प्राप्त हुआ—यह एक ऐसी शिक्षाप्रद कथा है जिसमें भगवान के नाम जप से पाप नाश होते हैं और भक्त को moksha की दिशा मिलती है। महाराज ने स्पष्ट किया कि भगवान अपने भक्त की आराधना को निभाते हैं, पर भक्त को भी नाम की रस-झंकार को नित्य बनाए रखना चाहिए। जीवन में अधिक महत्त्वाकांक्षा नहीं, बल्कि जो कुछ भगवान दे, उसे सहज स्वीकारना चाहिए। साथ ही कहा गया कि prayschitta के उपाय—पूजा, दान, नियम और तप—पाप के फल तो मिटाते हैं पर संस्कार अभी भी रहते हैं। संकीर्तन-यज्ञ की प्रेरणा भी इस प्रवचन का अहम हिस्सा रही, जिसने श्रद्धालुओं के भीतर भक्ति-उत्साह को और गहरा किया।

कार्यक्रम के दौरान भजन-कीर्तन का दौर निरंतर बहता रहा। निताई भैया ने संकीर्तन की शुरुआत करते हुए “मोहन आओ तो सही…”, “यमुना किनारे मेरो गांव…”, “दूर नगरी बड़ी दूर नगरी…” जैसे प्रचलित भजनों को मधुर स्वरों में प्रस्तुत किया। भक्तगण भाव-विभोर होकर झूम उठे और तलियों की थापों पर कदम-ताल बढ़ाते रहे। दुर्गा माता मंदिर में कथा के दौरान मौजूद श्रद्धालुओं ने पवित्र आस्था से श्रोताओं की भीड़ को निरंतर आकर्षित किया, वहीं श्री सिद्ध पीठ दंडी स्वामी मंदिर के परिसर में राधा- कृष्ण की कथा-श्रवण के दृश्य स्पष्ट थे। इस आठवें दिन के संकीर्तन समारोह ने भक्तों के बीच एक नया जोश और एक दीप्तिमान वातावरण पैदा किया।

यह आयोजन लुधियाना की धार्मिक-आध्यात्मिक चेतना को एक नई ऊर्जा देता रहा और समुदाय के बीच नैतिक मूल्य, नम्रता तथा सेवा-भावना को पुनर्जीवित किया। भक्ति-कीर्तन और कथा-कहानी के माध्यम से लोग जीवन के उद्देश्य, सामाजिक दायित्व और आस्था के दायरे को पुनः समझ सके। भविष्य में भी ऐसे आयोजनों के जरिये लोगों को धार्मिक-संस्कारों से जोड़े रखने की दिशा मजबूत बने रहे, ताकि हरिनाम संकीर्तन के संदेश अधिक से अधिक घर-ग homes तक पहुंचे। इच्छुक श्रद्धालु आगामी अवसरों की जानकारी मंदिर की आधिकारिक सूचना-स्रोतों तथा स्थानीय प्रचार-प्रसार से प्राप्त कर सकते हैं।

अधिक जानकारी के लिए देखें: हिंदू धर्म – Britannica और ISKCON.

Related: पंजाब में रातों का पारा 1.6°C गिरा—फरीदकोट सबसे ठंडा