श्रीराम ने कहा — पिता की आज्ञा ही सच्चा धर्म? जानें वजह

लुधियाना के टैंकी वाला पार्क, प्रेम नगर सिविल लाइंस में चल रहे सात दिवसीय राम कथा महोत्सव का छठा दिन अत्यंत भावुक वातावरण में सम्पन्न हुआ। कथा परंपरा के खास दौर में कथा-व्यास माता परजीत गिल ने भक्तिमय प्रसंगों के बीच चित्रकूट स्थित भरत–राम मिलाप की संवेदना से भरे दृश्य को प्रमुखता से रखा। आयोजन के आयोजक, पंडाल की सजावट और भक्तों की भीड़ के बीच यह दिन राम कथा के शाश्वत संदेश—धर्म, कर्तव्य और मातृ-पितृ पूजन—की धार को और दृढ़ बना गया।

कथा के अनुसार भरत जी गुरु वशिष्ठ, माताओं और समाज के साथ पैदल चित्रकूट पहुँचे थे ताकि प्रभु श्री राम से मिलकर अयोध्या लौटकर राजसिंहासन संभालने की विनती कर सकें। पर हृदयगत आग्रह के साथ अयोध्या की सत्ता के लिए राम ने भरत की कोशिश को नहीं स्वीकारा। राम ने पुत्र-आज्ञा, धर्म और कर्तव्य को सर्वोपरि मानते हुए लौटने से मना किया और भरत जी को मनोभाव से धर्म का गूढ़ पाठ समझाया। यह प्रसंग भक्ति के साथ-साथ धर्म-निष्ठा की पराकाष्ठा को उजागर करता है, जिसे श्रोता दिल से सुनते रहे।

चित्रकूट प्रवास के दौरान प्रभु राम ने अपने चरणों के शीतल आशीर्वाद से अनेक संत-मुनियों को प्रसन्न किया, जिन्होंने समूचे वातावरण को दिव्य बना दिया। इस प्रसंग के दौरान भरत जी ने भी संतों के दर्शन किए और समाज के विकास-स्वरूप संदेशों को ग्रहण किया। राम कथा के दर्शक, श्रद्धालु और आयोजक इस क्षण को रामचरित के एक महत्त्वपूर्ण अध्याय के रूप में याद कर रहे थे, जहां प्रेम, संघर्ष और धर्म की कथा एक घनत्वपूर्ण धागे में बंध जाती है।

आज के कार्यक्रम में आयोजकों की मौजूदगी दर्शकों के लिए एक मजबूत संदेश थी—धर्म के सही मूल्य, पितृ-आज्ञा के सम्मान और सामाजिक समरसता का पालन। राम कथा के इस पड़ाव ने लोगों में राम-हितैषी जीवन जीने की प्रेरणा बढ़ाई है। आगामी दिन भी इसी प्रवाह में चलेंगे, जहाँ श्रोताओं के बीच राम-कथा के प्रति आस्था और भी गहराती जाएगी। अगर आप भी इस महोत्सव की लाइव कवरेज और आगे की जानकारी पाना चाहते हैं, तो देखें भरत और चित्रकूट से जुड़ी ऐतिहासिक पंक्तियाँ।

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