भास्कर न्यूज की यह शाम लुधियाना के दंडी स्वामी मंदिर के परिसर में एक अलग ही आस्था के माहौल के साथ शुरू हुई। लगभग 5:15 बजे का समय था, जब मंदिर के चारों ओर फूलों की खूशबू हवा में तैर रही थी और पीली रोशनियों में मंदिर एक दिव्य आभा से जगमगा रहा था। भक्तों की भीड़ एक छांव में जमा हो चली थी— महिलाएं दुपट्टे सहेज रही थीं, बूढ़े अपनी मालाओं को व्यवस्थित कर रहे थे और बच्चे भी एक अलग संयम के साथ अपनी जगह पर बैठ चुके थे। हर तरफ एक ही धुन गूंज रही थी— Radhe-Radhe, Hare Govinda-Hare Krishna— मानो भक्ति की लय आधे मन से पहले से तैयार हो चुकी हो, और भक्तों के हृदय उसी धुन पर थिरकने को आतुर थे। साथ साथ मंदिर की घंटियाँ और मंजीरों की कदमताल इस पल को एक अनोखी रवानी दे रही थी।
जैसे ही सूर्यास्त के बाद समय 6:20 के पार पहुँचा, Vrindavan धाम से आए वरिंद्र हरि का मंदिर की पगडंडी पर आगमन हुआ। भगवा वस्त्रों में लिपटे और हल्की मुस्कान के साथ उपस्थित वरिंद्र हरि के दर्शन ने माहौल में एक नई ऊर्जा भर दी। श्रद्धालुओं की नजरें उन पर टिक गईं, और जैसे-जैसे उन्होंने मंदिर के भीतर कदम रखा, समूह में एक नयी लहर दौड़ गई। वरिंद्र हरि ने पहले सभी देवी-देवताओं के दर्शन किये, ठाकुर जी के चरणों में शीश नवाया और दंडी स्वामी जी के समक्ष दंडवत प्रणाम किया। उनके प्रवेश के साथ ही मंदिर का वातावरण मानो आध्यात्मिक महोत्सव से जुड़ गया हो— एक अदृश्य स्विच ऑन हो गया हो, जिसने भक्तों के चेहरों पर एक-सी आस्था की चमक बिठा दी।
मंच पर पहुँचते ही वरिंद्र हरि ने माइक संभाला और पहला ही स्वर एक गूंज बनकर निकल गया— “श्री दंडी स्वामी सिद्ध पीठ यह जग से नियारा है…” इसके साथ ढोलक की थपटी और हारमोनियम की मधुर तान ने संगत को एक ऐसे लोक में पहुंचा दिया, जहाँ हर ध्वनि और हर नाद भक्त के मन को भजनों की धारा में बाँध रहा था। इसके बाद क्रमशः “ذه Radha जीवन नीलमणि” और “Gopal Murliya wale” जैसे भजनों की धारा बह निकली। भक्तों की आंखें कभी बंद होतीं, तो कभी नम हो जातीं; हर होंठ हरिनाम जपते हुए अपने आप चल रहे थे, और मंदिर की छत से लटकती घंटियाँ भी उसी धुन पर सरक-सरक कर टूट-फूट जातीं। यहां की संगत के कण-कण में Radha नाम इतनी गहराई से बसा हुआ दिख रहा था कि प्रत्येक भक्त की आत्मा तुरंत ही उस भक्ति के sovereignties में विलीन हो जाती।
स्थानीय दर्शकों के साथ-साथ संतोष और श्रद्धा की वही उर्जा प्रकट होती रही, जो पूजा-अर्चना को एक साझा अनुभव बनाती है। वक्त के साथ भक्तों के चेहरों के भाव— कभी शांत, कभी आंसुओं से नम— यह स्पष्ट करता है कि इस संगम का उद्देश्य सिर्फ भजन नहीं, बल्कि राधा- नाम की अनुभूति और ठाकुर जी के साथ एक सहज संबंध स्थापित करना है। मंदिर की घंटियों की ध्वनि, भक्तों के मधुर वचनों और हरिनाम की गूंज ने यहां के हर कण को Radha-Krishna bhajans की उसी पवित्र धारा से जोड़ा रखा है, जिसे लोग Ludhiana में एक खास धार्मिक आयोजन के तौर पर याद करें। और जहां_radha_ nam_ की मधुर धारा हर जगह बहती रहे, वहां ठाकुर जी भी अपने भक्तों के बीच सदा प्रत्यक्ष बने रहते हैं, यह अनुभव इस शाम ने स्पष्टत: दे दिया। अधिक जानें: Vrindavan और Radha-Krishna bhajans.
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